The author explains, in a very lucid and simple style, the basic principles of interpretation, the subsidiary rules of interpretation and aids to interpretation, presumptions in statutory interpretation, Statutes affecting the State and the Courts’ Jurisdiction, Repeal and expiry of Statutes, Taxing Statutes, Penal and Remedial Statutes, and Interpretation of Delegated Legislation.
कानूनों का निर्वचन की दिन – प्रतिदिन बढ़ती हुई महत्वता एवं आवश्यकता को देखते हुए लेखक ने राजभाषा हिन्दी में कानूनों का निर्वचन नामक अपना यह प्रथम संस्करण प्रस्तुत किया है।
जब भी कोई विवाद न्यायालय के समक्ष आता है तो उसका प्रत्येक निर्णय किसी कानून (अधिनियम) के निर्वचन से संबंधित ही होता है। लेखक ने निर्वचन के सामान्य नियमों के साथ – साथ तार्किक निर्वचन के नियम तथा कानूनों का वर्गीकरण भी दिया है। विधि के आधुनिक स्वरूप में विधि के निर्वचन हेतु लैटिन सूत्र (latin maxims) बहुत सहायक सिद्ध होते हैं। अतएव लेखक ने इस विषय पर निर्वचन के कतिपय सूत्र शीर्षक अध्याय दिया है। इसके अतिरिक्त उसने निर्वचन के आंतरिक एवं बाह्य साहाय्य, संविधान का निर्वचन, कानून निर्वचन में “विधि शासन” और “नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत” की भूमिका, कानूनों का भूतलक्षी (Retrospective) प्रवर्तन इत्यादि महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला है। विषयों से संबद्ध वाद (cases) और उन पर उच्च न्यायालयों एवं उच्चतम न्यायालय के अधितम निर्णयों को भी पुस्तक में यथास्थान दिया गया है। लेखक ने परिशिष्ट के रूप में साधारण खंड अधिनियम (General Clauses Act), 1897 सम्पूर्ण रूप में दिया है। पुस्तक के अंत में बैंक दिया गया है जिसमें परीक्षा की दृष्टि से संभावित प्रश्नों का संग्रह है।
पुस्तक की भाषा सरल और सुबूध तथा शैली रुचिपूर्ण है। स्थान – स्थान पर प्रयुक्त परिभाषित और क्लिष्ट शब्दों को भी साथ में दिया गया है।
कानूनों का निर्वचन विषय के अब विधि स्नातक (एल.एल.बी)के नवीन पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने के कारण यह पुस्तक विधार्थियों एवं विधि-प्राध्यापकों के लिए नितांत उपयोगी साबित होगी। इसके साथ ही साथ वकीलों एवं प्रादेशिक न्यायिक सेवा की प्रतियोगिता परीक्षा देने वाले परीक्षार्थियों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी।
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